भगवान श्रीकृष्ण मथुरा से गोकुल में जाकर बसे, ऋषि गर्गाचार्य ने किया नामकरण

वैसे तो पूरा ब्रज भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली है, ब्रज में जहां पर भी जाएंगे कहीं ना कहीं भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के दर्शन होंगे, मगर गोकुल भी भगवान श्रीकृष्ण की अनुपम लीला स्थ

वैसे तो पूरा ब्रज भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली है, ब्रज में जहां पर भी जाएंगे कहीं ना कहीं भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के दर्शन होंगे, मगर गोकुल भी भगवान श्रीकृष्ण की अनुपम लीला स्थली में से एक है। गोकुल में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन है। मथुरा में कारागार में जन्म होने के बाद सबसे पहले वासुदेव अपने पुत्र कन्हैया को गोकुल लेकर ही पहुंचे थे। गोकुल में ही भगवान श्री कृष्ण का नामकरण हुआ था।  कथाओं में ऐसा वर्णित है कि कंस के भय से नंद बाबा पूरे गांव के साथ बरसाना से करीब 12 किलोमीटर दूर एक निर्जन स्थान पर पहुंच गए। यहां नंदगांव की स्थापना की थी और वहीं पर जाकर बस गए थे। चलिए, आज गोकुल धाम की लीलाओं का दर्शन करते हैं।

     कन्हैया ने सबसे अधिक समय गोकुल में व्यतीत किया

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में गोकुलधाम है। मथुरा से इसकी दूरी करीब 15 किमी है। यह ठीक यमुना जी के किनारे बसा हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था। कृष्ण का जन्म होते ही उनके माता-पिता देवकी और वसुदेव भयभीत हो गए। उन्हें यह डर सताने लगा कि कंस कहीं इन्हें भी ना मार दे। इसलिए वसुदेव श्री कृष्ण को टोकरी में रखकर यमुना पार करते हुए गोकुल पहुंच गए। यहां पर नंदबाबा और यशोदा मैया के यहां रख कर मथुरा कंस के कारागार चले आए। मथुरा जिले में सबसे अधिक समय भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलधाम में ही व्यतीत किया है। इसलिए गोकुलधाम ब्रज की सबसे पावन और पवित्र भूमि मानी जाती है।


गोकुल में ही श्रीकृष्ण का नामकरण हुआ 

भगवान श्री कृष्ण का नामकरण गोकुल में हुआ है। ऋषि गर्गाचार्य ने पूरे विधि विधान के साथ भगवान का नाम कृष्ण रखा। इसीलिए भगवान पूरे जगत में श्रीकृष्ण के नाम से सुविख्यात हुए। बालस्वरूप में नटखट लीलाओं के चलते श्रीकृष्ण को कन्हैया भी कहा जाने लगा। अनेक लीलाओं के चलते श्री कृष्ण का नाम भी अलग-अलग पड़ता गया। माखन चोरी करने के कारण उन्हें माखन चोर भी कहा गया। बंशीधर, मोर मुकुट धारी, गोपाल, छलिया आदि नामों से भी भगवान श्रीकृष्ण जाने जाते हैं।

      कन्हैया की खीर जूठन की लीला

गोकुलधाम ने खीर जूठन की भी लीला भाव से भरी हुई है। ऐसा कथाओं में वर्णित है कि ऋषि गर्गाचार्य जब भगवान श्रीकृष्ण का नामकरण करने के लिए आए तो यशोदा मैया ने उनका आदर सत्कार के साथ स्वागत किया। यशोदा मैया ने ऋषि से प्रसाद ग्रहण करने के लिए कहा। ऋषि गर्गाचार्य ने यशोदा मैया से कहा कि वह स्वयं अपने हाथों से प्रसाद बनाकर ग्रहण करते हैं। पहले वह यमुनाजी स्नान करेंगे फिर प्रसाद बनाएंगे और उसके बाद ठाकुर जी को भोग लगाकर ग्रहण करेंगे। यशोदा मैया ने राशन आदि दे दिया और ऋषि गर्गाचार्य यमुना जी के किनारे चल पड़े। यमुना जी स्नान करने के बाद उन्होंने खीर बनाई और ठाकुर जी को भोग लगाया, तभी उनकी आंख खुली तो देखा कि बालस्वरूप कन्हैया उनकी खीर को खा रहे हैं। ऋषि गर्गाचार्य ने यशोदा मैया से शिकायत की। कहा, देख तेरा लाला मेरी खीर जूठी कर गया। इसी से मुझे ठाकुरजी का भोग लगाना था।

 भगवान ने गर्गाचार्य ऋषि को दिया दर्शन

यह बात सुनकर यशोदा मैया ने बालस्वरूप कन्हैया को अपनी गोद में ले लिया और ऋषि से क्षमा मांगी। यशोदा मैया ने कहा कि हे ऋषि देव अब आप आराम से खीर बनाइए और ठाकुर जी को भोग लगाइए। कन्हैया अब मेरे हाथ गोद में है, अब वह कुछ नहीं करेगा। फिर ऋषि गर्गाचार्य ने बड़े भाव से खीर बनाई और ठाकुर जी को भोग लगाया। ठाकुर जी कन्हैया के रूप में माता यशोदा की गोद में बैठे हुए थे। उनके मन में विचार आया कि जब ऋषि उन्हें बुला रहे हैं तो वह कैसे ना जाएं? उन्होंने एक दूसरा रूप बनाया और वह ऋषि के पास पहुंच गए, प्रसाद ग्रहण करने लगे। यह देख कर फिर ऋषि गर्गाचार्य हतप्रभ रह गए। वह, फिर यशोदा मैया से शिकायत करने जा रहे थे तभी भगवान श्री कृष्ण ने साक्षात नारायण के रूप का दर्शन कराया। उन्होंने बताया कि वह स्वयं साक्षात ठाकुर जी हैं। यह देखकर ऋषि गर्गाचार्य  आश्चर्य में पड़ गए। भाव विभोर होकर यशोदा मैया को बताने के लिए चल पड़े। मगर प्रभु ने कहा कि वह धरती पर लीला करने के लिए अवतरित हुए हैं। इसलिए यशोदा मैया को कुछ मत बताओ। ऋषि गर्गाचार्य भगवान श्रीकृष्ण की बात मान जाते हैं और फिर वह यशोदा मैया को कुछ भी नहीं बताते हैं। ऋषि गर्गाचार्य मन ही मन प्रफुल्लित हो जाते हैं कि आज साक्षात नारायण के दर्शन हो गए उनका जीवन तो धन्य हो गया।